सरकार की मानें तो इस वजह से असर खो रही हैं एंटीबायोटिक दवाएं

सरकार की मानें तो इस वजह से असर खो रही हैं एंटीबायोटिक दवाएं

सेहतराग टीम

पूरी दुनिया में एंटीबायोटिक दवाएं तेजी से बेअसर होती जा रही हैं। आमतौर पर इसके लिए इन दवाओं के अंधाधुंध इस्‍तेमाल, बीमारियों के जीवाणुओं का लगातार अपने आप को बदलते जाने और कई सालों से नए एंटीबायोटिक की खोज न होने को इसका मुख्‍य कारण माना जाता रहा है। बाजार में उपलब्‍ध सबसे नया एंटीबायोटिक करीब 33 साल पहले खोजा गया था। इसके बाद 2016 में नए एंटीबायोटिक की खोज हुई है मगर सभी तरह के परीक्षणों से गुजरने के बाद बाजार में आने में इसे अभी कई वर्ष लगेंगे। ऐसे में बीमारियों से लड़ने के लिए पुराने एंटीबायोटिक्‍स से काम चलाना पड़ रहा है मगर पिछले 15 वर्षों में एंटीबायोटिक्‍स के बेअसर होने की दर तेजी से बढ़ी है।

एंटीबायोटिक्‍स के बेअसर होने के पीछे भारत सरकार ने अब एक नया कारण भी जोड़ दिया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय का कहना है कि एंटीबायोटिक दवा कारखानों का कचरा इसका एक कारण हो सकता है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार संभवत: एंटीबायोटिक दवा कारखानों का कचरा, इन दवाओं के मानव शरीर पर असर को खत्म करने वाली प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर रहा है।
मंत्रालय ने दावा किया है कि उसे इस बात की जानकारी है कि एंटीबायोटिक बनाने वाली इकाइयों और अस्पतालों से निकलने वाला अपशिष्ट एंटीबायोटिक के प्रतिरोध का कारण बन रहा है। 

इस बारे में किए गए अध्ययन के हवाले से मंत्रालय ने बताया कि एंटीबायोटिक अपशिष्टों की पर्यावरण में मौजूदगी के कारण, रोगजनक तत्वों को बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोध (एएमआर) का संवर्धन होता है।

सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोधक क्षमता तब उत्पन्न होती है जब सूक्ष्मजीव किसी औषधि के प्रभाव को सहन कर जीवित रह जाते है जबकि सामान्यत: औषधि के प्रभाव की वजह से सूक्ष्मजीव या तो नष्ट हो जाते हैं या इनकी वृद्धि रुक जाती है। 

मंत्रालय के अनुसार, ‘औषधि निर्माण इकाइयों या अस्पतालों से निकलने वाले अपशिष्ट का निपटान वैज्ञानिक ढंग से नहीं किए जाने पर, एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के संभावित कारण हो सकते हैं।’ इसकी वजह पर्यावरण में अनुमानित निष्प्रभावी सांद्रता (पीएनईसी) से अधिक सांद्रता में एंटीबायोटिक की मौजूदगी के कारण सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोधक क्षमता विकसित होना है। 
वैसे मंत्रालय ने दावा किया है कि दवा कंपनियों और अस्पतालों से निकलने वाले हानिकारक रसायनों को पर्यावरण में घुलने से रोकने के लिये कारगर उपाय किए जा रहे हैं। इसके तहत केंद्र और राज्यों के स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दवा कारखानों से निकलने वाले दूषित जल को शोधित करने के बाद ही सिंचाई या जलशोधन संयंत्र (सीईटीपी) में इस्तेमाल की अनुमति देते हैं। इसी प्रकार दवा कारखानों और अस्पताल से निकले मेडिकल कचरे के निस्तारण के संबंध में मंत्रालय ने मानक एवं दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने को कहा है।

इसके अलावा एएमआर के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करते हुए मंत्रालय ने दवा कारखानों के औद्योगिक अपशिष्ट में एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी की वजह से सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होने की स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना आरंभ की है। इसके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एंटीबायोटिक अवशेषों के संबंध में दवा उद्योगों के लिये मानकों का प्रारूप भी तैयार कर लिया है। 

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